कृत्रिम बारिश के जरिये बादलों की भौतिक अवस्था में आर्टिफशल तरीके बदलाव लाया जाता है जो इसे बारिश के अनुकूल बनाता है। यह प्रक्रिया क्लाउड सीडिंग कहलाती है। बादल पानी के बहुत छोटे-छोटे कणों से बने होते हैं। जो कम भार की वजह से खुद ही पानी की शक्ल में जमीन पर बरसने में पूरी तरह सक्षम होते हैं। कभी-कभी किसी खास परिस्थितियों में जब ये कण इकड़े हो जाते हैं, तब इनका आकार और भार अच्छा खासा बढ़ जाता है। तब ये ग्रेविटी के कारण धरती पर बारिश के रूप में गिरने लगते हैं।
कृत्रिम बारिश तकनीक के तीन चरण होते हैं।
स्टेप 1: पहले चरण में रसायनों का इस्तेमाल करके उस इलाके के ऊपर बहने वाली हवा को ऊपर की ओर भेजा जाता है, जिससे वे बारिश के बादल बना सकें। इस प्रक्रिया में कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, कैल्शियम ऑक्साइड, नमक तथा यूरिया के यौगिक और यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट के यौगिक का इस्तेमाल किया जाता है। ये यौगिक हवा से जलवाष्प को सोख लेते हैं और दवाब बनाने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं।
स्टेप 2: दूसरे चरण में बादलों के द्रव्यमान को नमक, यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट, सूखा बर्फ और कैल्शियम क्लोराइड का प्रयोग करके बढ़ाया जाता है।
स्टेप 3: तीसरे चरण में सिल्वर आयोडाइड और शुष्क बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों की आसमान में छाएबादलों में बमबारी की जाती है। ऐसा करने से बादल में छुपे पानी के कण बिखरकर बारिश के रूप में जमीन पर गिरने लगते हैं।
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