सुपरमून
सुपरमून वह खगोलीय घटना है जिसके दौरान चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है और 14 फ़ीसदी अधिक चमकीला भी. इसे पेरिगी मून भी कहते हैं. धरती से नजदीक वाली स्थिति को पेरिगी (3,56,500 किलोमीटर) और दूर वाली स्थिति को अपोगी (4,06,700 किलोमीटर) कहते हैं.
ब्लूमून
यह महीने के दूसरे फुल मून यानी पूर्ण चंद्र का मौक़ा भी है. जब फुलमून महीने में दो बार होता है तो दूसरे वाले फुलमून को ब्लूमून कहते हैं.
ब्लडमून
चंद्र ग्रहण के दौरान पृथ्वी की छाया की वजह से धरती से चांद काला दिखाई देता है. 31 तारीख को इसी चंद्रग्रहण के दौरान कुछ सेकेंड के लिए चांद पूरी तरह लाल भी दिखाई दिया. इसे ब्लड मून कहते हैं.
यह स्थिति तब आती है जब सूर्य की रोशनी छितराकर चांद तक पहुंचती है. परावर्तन के नियम के अनुसार हमें कोई भी वस्तु उस रंग की दिखती है जिससे प्रकाश की किरणें टकरा कर हमारी आंखों तक पहुंचती है. चूंकि सबसे लंबी तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) लाल रंग का होती है और सूर्य से सबसे पहले वो ही चांद तक पहुंचती है जिससे चंद्रमा लाल दिखता है. और इसे ही ब्लड मून कहते हैं.
चंद्रग्रहण
सूर्य की परिक्रमा के दौरान पृथ्वी, चांद और सूर्य के बीच में इस तरह आ जाती है कि चांद धरती की छाया से छिप जाता है. यह तभी संभव है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा अपनी कक्षा में एक दूसरे के बिल्कुल सीध में हों.
पूर्णिमा के दिन जब सूर्य और चंद्रमा की बीच पृथ्वी आ जाती है तो उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है. इससे चंद्रमा के छाया वाला भाग अंधकारमय रहता है. और इस स्थिति में जब हम धरती से चांद को देखते हैं तो वह भाग हमें काला दिखाई पड़ता है. इसी वजह से इसे चंद्र ग्रहण कहा जाता है.
सुपरमून वह खगोलीय घटना है जिसके दौरान चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है और 14 फ़ीसदी अधिक चमकीला भी. इसे पेरिगी मून भी कहते हैं. धरती से नजदीक वाली स्थिति को पेरिगी (3,56,500 किलोमीटर) और दूर वाली स्थिति को अपोगी (4,06,700 किलोमीटर) कहते हैं.
ब्लूमून
यह महीने के दूसरे फुल मून यानी पूर्ण चंद्र का मौक़ा भी है. जब फुलमून महीने में दो बार होता है तो दूसरे वाले फुलमून को ब्लूमून कहते हैं.
ब्लडमून
चंद्र ग्रहण के दौरान पृथ्वी की छाया की वजह से धरती से चांद काला दिखाई देता है. 31 तारीख को इसी चंद्रग्रहण के दौरान कुछ सेकेंड के लिए चांद पूरी तरह लाल भी दिखाई दिया. इसे ब्लड मून कहते हैं.
यह स्थिति तब आती है जब सूर्य की रोशनी छितराकर चांद तक पहुंचती है. परावर्तन के नियम के अनुसार हमें कोई भी वस्तु उस रंग की दिखती है जिससे प्रकाश की किरणें टकरा कर हमारी आंखों तक पहुंचती है. चूंकि सबसे लंबी तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) लाल रंग का होती है और सूर्य से सबसे पहले वो ही चांद तक पहुंचती है जिससे चंद्रमा लाल दिखता है. और इसे ही ब्लड मून कहते हैं.
चंद्रग्रहण
सूर्य की परिक्रमा के दौरान पृथ्वी, चांद और सूर्य के बीच में इस तरह आ जाती है कि चांद धरती की छाया से छिप जाता है. यह तभी संभव है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा अपनी कक्षा में एक दूसरे के बिल्कुल सीध में हों.
पूर्णिमा के दिन जब सूर्य और चंद्रमा की बीच पृथ्वी आ जाती है तो उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है. इससे चंद्रमा के छाया वाला भाग अंधकारमय रहता है. और इस स्थिति में जब हम धरती से चांद को देखते हैं तो वह भाग हमें काला दिखाई पड़ता है. इसी वजह से इसे चंद्र ग्रहण कहा जाता है.
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