क्या है टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी?
टच स्क्रीन यानि स्पर्श पटली टैक्नोलाॅजी एक ऐसी तकनीक है जो कि सीधे इशारे अथवा स्पर्श आधारित परिचालन के सिद्धांत पर कार्य करती है। कहने का मतलब यह है कि तथा डिजिटल दुनिया को केवल स्पर्श मात्रा से संचालित किया जा सकता है। दरसल, टच स्क्रीन में एक इलैक्ट्राॅनिक विजुअल डिस्प्ले यानि दश्य प्रदर्श होता है, जिसमें डिस्प्ले क्षेत्र में किसी भी स्पर्श को पहचानने, उसकी अवस्थिति को जानने तथा तदनुसार उस इलैक्ट्राॅनिक उपकरण को निर्देश देने की क्षमता होती है। टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी में दो खास बातें होती हैं। एक तो यह है कि इसकी सहायता से स्क्रीन पर जो डिस्प्ले होता इंटरेक्ट कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए हमें न तो किसी कीबोर्ड की आवश्यकता होती है और न ही किसी माउस आदि की जरूरत होती है। इसकी खास बात यह है कि टच स्क्रीन का इस्तेमाल करते समय हमें किसी अन्य बिचोलिए साधन या उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है, जिसको हाथ से पकड़ना पड़े। स्पर्श संवेदी सतह काफी टिकाऊ और लचीली होती है। इसको लचीला बनाने के लिए कुछ पाॅलीमरों तथा कांच का इस्तेमाल किया जाता है। इस संवेदी पैनल को डिस्प्ले स्क्रीन में इस प्रकार लगाया जाता है कि यह आसानी से दिखाई देता रहे। टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी का दूसरा महत्वपूर्ण घटक होता है कंट्रोलर यानि नियंत्राक। यह एक ऐसी इलेक्ट्राॅनिक युक्ति होती है जो कंप्यूटर और डिस्प्ले स्क्रीन के मध्यस्थ का काम करती है। यह विद्युत संकेतों को डिजिटल संकेतों में बदलती है ताकि उपकरण का कंप्यूटर इन संकेतों को आसानी से समझ सके। कंट्रोलर का संबंध बाहरी डिस्प्ले स्क्रीन से होता है, इसलिए हमारे द्वारा स्क्रीन को स्पर्श करते ही संकेत कंप्यूटर को भेज दिए जाते हैं। टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी का तीसरा घटक होता है साॅफ्टवेयर ड्राइवर जो कि अनुवादक का कार्य करता है और कंट्रोलर से आने वाली सूचना को इस तरह बदलता है ताकि प्रचालक तंत्रा इसे आसानी से समझ सके।
टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी का इतिहास
टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी के बारे में सबसे पहले उस समय पता चला जब 1971 में एलोग्राफिक्स कंपनी ने एलोग्राफ नामक टच संेसर का आविष्कार किया। यह कंपनी विभिन्न अनुसंधानों एवं औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए ग्राफिकल डाटा डिजिटलाइजर बनाने के लिए स्थापित की गई थी। इस टैक्नोलाॅजी ने बहुत से उपकरणों के विकास का आधार रखा। इस शृंखला में 1983 में एचपी-150 नामक पहला टच स्क्रीन कंप्यूटर बनाया गया। इस टैक्नोलाॅजी में इंफ्रारेड टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी का इस्तेमाल किया गया था। इसी तकनीक का इस्तेमाल कर एटीएम यानि आॅटोमेटेड टेलर मशीन जैसे अनुप्रयोग विकसित हुए। समय के साथ-साथ टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी का विकास हुआ, जिसके फलस्वरूप प्रयोगकर्ता को अधिक शुद्धता और अधिक विशेषताओं वाली टच स्क्रीन सुविधाएं मिलने लगीं।
टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी के प्रकार
टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी मुख्यतः चार प्रकार की होती है -रेजिस्टिव यानि प्रतिरेाधी टच स्क्रीन, कैपेसिटिव यानि संधारित्रा टच स्क्रीन, सर्फेस अकाॅस्टिक वेब टच स्क्रीन तथा इन्फ्रारेड टच स्क्रीन। इनके अलावा भी कुछ टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी होती हैं जैसे कि स्ट्रैन गाॅज टच स्क्रीन, आॅप्टीकल इमेजिंग टच स्क्रीन तथा डिस्पर्सिव सिग्नल टैक्नोलाॅजी टच स्क्रीप। रेजिस्टिव यानि प्रतिरोध टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी सबसे पुरानी तकनीक है और आजकल टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी के माकेर्ट में सबसे अधिक प्रचलित तकनीक है। यह बेहद सस्ती और टिकाऊ होने के साथ-साथ ऊष्णता में भी बेहतर तरीके से काम कर सकती है। रेजिस्टिव टच स्क्रीन पैनल में कांच या एक्रिलिक की बहुत सारी परतें होती हैं जिन पर इंडियमटिन आॅक्साइड से बनी विद्युत चालक एवं प्रतिरोधी पदार्थों की परत चढ़ी होती है। इन परतों पर विभिन्न वोल्टेज लगाई जाती हैं। जब स्क्रीन को स्पर्श किया जाता है तो सामने की परत पीछे की परत से वोल्टेज प्राप्त करती है तथा पिछली परत, सामने की परत से वोल्टेज प्राप्त करती है। इस तरह नियंत्रक को स्पर्श की स्थिति पता चल जाती है और उचित निर्देश संचरित हो जाता है।
इसका बहुत से उपकरणों में इस्तेमाल किया जाता है जैसे कि सेलफोन, जीपीएस नेवीगेशन उपकरण तथा डिजिटल कैमरा आदि में। रेजिस्टिव टच स्क्रीन की सबसे बड़ी कमी यह है कि इनकी कई परतों के कारण इनकी प्रकाशीय पारदर्शिता कम होती है, और जल्दी ही क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। कैपिसिटिव यानि संधारित्रा टच स्क्रीन में दो परतों वाली इलैक्ट्रोडों की ग्रिड होती है जो कि टच स्क्रीन पैड के दूसरी तरफ लगे इंटीग्रेटेड सर्किट यानि एकीकृत परिपथ से जुड़ी होती हैं। ऊपरी परत में इलैक्ट्रोडों की ऊध्र्व पट्टियां होती हैं।
इन दोनों परतों के बीच लगे इंटीगे्रटेड सर्किट की सहायता से इन परतों की कैपिसिटेंस यानि धारिता मापी जाती है। यदि इन इलैक्ट्रोडों के बीच हम अपनी अंगुली लाते हैं तो इनकी धारिता बदल जाती है। क्योंकि वायु की अपेक्षा हमारी अंगुली के डाइलेक्ट्रिक गुण काफी अलग होते हैं। जब कोई किसी टच स्क्रीन को अंगुली से स्पर्श करता है तो उसकी अंगुली पर कुछ आवेश स्थानांतरित हो जाता है, जिसके कारण स्क्रीन पर विभवांतर यानि पोटेंसियल डिफरेंस पैदा हो जाता है। पैनल कंट्रोलर इस विभवांतर को पहचान कर उस उपकरण के कंप्यूटर को सूचना भेज देता है। और उसी के अनुसार वह उपकरण कार्य करने लगता है। कैपिसिटिव टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी में लगभग 90 प्रतिशत प्रकाश स्क्रीन से उत्सर्जित होता है। रेजिस्टिव टच स्क्रीन की अपेक्षा इसकी दक्षता अधिक होती है। इसीलिए इसका प्रयोग ऐसे अनुप्रयोगों में किया जाता है जिनमें स्पष्ट और अधिक परिशुद्ध परिणामों की आवश्यकता होती है। जैसे कि लैपटाॅप में तथा चिकित्सा इमेजिंग के क्षेत्रा में। इसके अलावा सूचना प्रदाता कियोस्क में, बैंकों में तथा एटीएम में लगी स्क्रीनों में भी कैपिसिटिव टच स्क्रीन को प्राथमिकता दी जाती है। जहां रेजिस्टिव टच स्क्रीन प्रैशर सेंसिटिव यानि दबाव संवेदी होती है वहीं कैपिसिटिव टच स्क्रीन टच सेंसिटिव यानि स्पर्श संवेदी होती है। इसीलिए इस्तेमाल के हिसाब से कैपिसिटिव टच स्क्रीन को अधिक अच्छा माना जाता है। सरफेस अकाॅस्टिक वेब टच स्क्रीन एक अति आधुनिक टच स्क्रीन तकनीक है जिसकी स्पष्टता और विश्वसनीयता अतुलनीय है। इसमें पोंइटिंग डिवाइस जैसे अंगुली आदि की उपस्थिति का पता लगाने के लिए पराध्वनि तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है। इस टैक्नोलाॅजी में ट्रांसमीटिंग और रिसीविंग
पीजोइलेक्ट्रिक ट्रांस्ड्यूसर के साथ शुद्ध कांच का इस्तेमाल किया जाता है। टच स्क्रीन कंट्रोलर, टांसमीटिंग ट्रांसड्यूसर के विद्युत संकेत भेजता है, जो कांच के अंदर के इन संकेतों को अल्ट्रासोनिक यानि पराध्वनिक तरंगों मंे परिवर्तित कर देता है। जब आप स्क्रीन को स्पर्श करते हैं तो आप इसके संचरित हो रही तरंगों के कुछ भाग को अवशोषित कर लेते हैं। अब जो संकेत मिलता है उसका पहले से स्टोर किए गए डिजिटल मैप से मिलान किया जाता है, अंतर को ज्ञात करके स्पर्श की स्थिति का पता लगाया जाता है। सरफेस वेब टच स्क्रीन का उपयोग उन सभी उपकरणों में किया जा सकता है जहां अत्यधिक स्पष्ट और अधिक चलने वाली स्क्रीन की जरूरत हो। इन्हें कियोस्क तथा ट्रासड्यूशर में उपयोग किया जाता है। इनका उपयोग एटीएम आदि में अधिक किया जाता है। यदि इसकी सतह गंदी हो जाती है तो वहां निशान पड़ जाते हैं। इन्फ्रारेड टच स्क्रीन टैक्नालाॅजी में डिस्प्ले पर इन्फ्रारेड तरंगों की एक स्क्रीन डाली जाती है और जहां इसे स्पर्श किया जाता है वहां पर इन्फ्रारेड तरंगों में व्यवधान होता है, इसलिए स्पर्श की स्थिति पता चल जाती है। इसके लिए स्पर्श के साथ बिल्कुल भी दबाव लगाने की आवश्यकता नहीं होती है। इसके टच फ्रेम में इन्फ्रारेड एलईडी तथा फोटो ट्रांजिस्टर की पंक्ति होती हैं जो कि दो विपरीत साइडों में लगे होते हैं ताकि अदृश्य इन्फ्रारेड प्रकाश की एक ग्रिड बन सके। जब एलईडी बीम के पैटर्न पर किसी स्पर्श के कारण कोई व्यवधान पड़ता है तो इन्फ्रारेड एलईडी और फोटोडिटेक्टर की लड़ी से इसका पता चल जाता है और आगे के निर्देश संचरित हो जाते हैं। दरअसल, इन्फ्रारेड टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी में प्रकाश के पूर्ण परावर्तन के सिद्धांत का इस्तेमाल किया जाता है।
इन्फ्रारेड टच स्क्रीन टैक्नोलाॅजी में प्रकाश का संचरण अत्यधिक होता है, परंतु रिजोल्यूशन उतना अच्छा नहीं होता है। इन्फ्रारेड टच स्क्रीन का सबसे अच्छा फायदा यह है कि इसमें किसी भी पोइंटर का पता चल जाता है। जैसे कि अंगुली, ग्लब पहने हुए अंगुली, स्टाइलस अथवा पेन आदि। इसीलिए इस टैक्नोलाॅजी का उपयोग उद्योगों एवं चिकित्सकीय उपकरणों म किया जाता है, क्योंकि उन्हें पूरी तरह से सील करके किसी भी कड़ी या मुलायम चीज से आॅपरेट किया जा सकता है। लेकिन इसका अत्यधिक सेंसिटिव होना इसकी बड़ी कमी है।
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